मीनापुर कौशलेन्द्र झा
कलम चलती है तो दिल की आवाज़ लिखता हूं, गम और जुदाई के अंदाज़ ए बयान लिखता हूं। रुकते नहीं हैं मेरी आंखों से आंसू, मैं जब भी उनकी याद में अलफ़ाज़ लिखता हूं।
अब और क्या लिखू़ .....? क्योंकि.......
आंखों से आंसू न निकले तो दर्द बड़ा हो जाता है। उनके साथ बिताया हुआ हर पल की याद बड़ा हो जाता है। शायद वो हमें अभी तक भूल गए होंगे। मगर अभी भी उसका चेहरा मुझे ख्वाबों में नज़र आता है।
ये मेरे हमराज..........
वक़्त गुज़रता रहा पर सांसे थमी सी थी। मुस्कुरा रहे थे हम, पर आंखों में नमी सी थी। साथ हमारे जहां था सारा, पर न जाने क्यों मुझे तुम्हारी कमी सी थी।
कलम चलती है तो दिल की आवाज़ लिखता हूं, गम और जुदाई के अंदाज़ ए बयान लिखता हूं। रुकते नहीं हैं मेरी आंखों से आंसू, मैं जब भी उनकी याद में अलफ़ाज़ लिखता हूं।
अब और क्या लिखू़ .....? क्योंकि.......
आंखों से आंसू न निकले तो दर्द बड़ा हो जाता है। उनके साथ बिताया हुआ हर पल की याद बड़ा हो जाता है। शायद वो हमें अभी तक भूल गए होंगे। मगर अभी भी उसका चेहरा मुझे ख्वाबों में नज़र आता है।
ये मेरे हमराज..........
वक़्त गुज़रता रहा पर सांसे थमी सी थी। मुस्कुरा रहे थे हम, पर आंखों में नमी सी थी। साथ हमारे जहां था सारा, पर न जाने क्यों मुझे तुम्हारी कमी सी थी।
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