बिहार : इस्तीफा से उभरे राजनीतिक परिदृश्य

कौशलेन्द्र झा 

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस्तीफा से उभरे राजनीतिक परिदृश्य को लेकर हमारा बिहार एक बार फिर से सुर्खियों में हैं। मुख्यमंत्री इस्तीफा वापिस लेंगे या नही? संशय अभी भी बरकरार है। शरदजी की बतों से तो लगता है कि बिहार में नेतृत्व परिवर्तन होके रहेगा। पर, विधायक दल के हठ के सामने हो सकता है कि नीतीशजी को झुकना पड़े। सवाल उठता है कि क्या यह जरुरी था? रविवार को पुरा दिन बिहार में राजद व जदयू के नए समीकरण की बात होती रही। हालांकि, स्वयं लालूजी इनकार करते रहे। किंतु, जदयू के राष्ट्रीय नेता केसी त्यागी ने राजद से हाथ मिलाने का जो संकेत दिया। क्या उसका दूरगामी असर नही परेगा? राजनीतिशास्त्र के विद्यार्थी होने के नाते मैं दावे से कह सकता हूं कि लोकसभा चुनाव परिणाम अपने जगह पर सत्य है। पर, यह भी उतना ही सत्य है कि बिहार आज भी नीतीश और लालू के ध्रूवीकरण से उबर नही पाया है। रविवार की घटनाक्रम ने नीतीश समर्थको को सोचने पर विवश कर दिया है। यदि, आज नीतीशजी अपना इस्तीफा वपिस लेतें हैं तो सम्भव है कि बिहार की राजनीति में ध्रूवीकरण बरकरार रह जाये। किंतु, यदि नेतृत्व परिर्वतन हुआ तो बिहार की राजनीति में भाजपा की धमक को रोकना और भी मुश्किल हो जायेगा। सबसे अहम बात तो ये है कि यदि इस उठा पटक के बीच बिहार में किसी की सरकार नही बनी तो राष्ट्रपति शासन अवश्यसंभावी है। यानी केन्द्र की सत्ता सम्भालने के साथ ही मोदीजी को बिहार का बागडोर थाली में परोस कर देने की तैयारी हो रही है। ताज्जुब की बात है कि बिहारी की थाली को मोदीजी के लिए सजाने वाले वे लोग हैं, जो खुद को मोदी बिरोधी होने का दंभ भरतें हैं। बहुत हो गया, रुठने और मनाने का दौड़। कुर्सी सम्भालिए, काम करिये और मुल्यांकन मतदाताओं को करने दीजिए।

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