झोपरपट्टियों से आज भी नही निकल पाए शहीद के गांव चैनपुर के लोग

;महान शहीद के पैतृक गांव की दुर्दशा


मीनापुर कौशलेन्द्र झा

अंग्रेज थानेदार लुईस वालर को मीनापुर थाना में चिता सजा कर देश की खातिर फांसी को आलिंगन करने वाले अमर शहीद जुब्बा सहनी का पैतृक गांव चैनपुर। आजदी के 68 साल बाद भी अपनी बदहाली पर आठ आठ आंसू बहाने को अभिशप्त है। झोपड़पट्टियों से अटा पड़ा इस गांव में इक्का दुक्का ही पक्का मकान देखने को मिला। कहतें हैं कि चुनाव का मौसम आते ही चैनपुर नेताओं का तीर्थस्थल बन जता है। सभी यहां की मिट्टी को नमन करने आतें हैं। बावजूद इसके आज तक चैनपुर को राजश्व गांव का दर्जा नही मिलना। अब यहा के लोगो को चुभने लगा है।

गांव में प्रवेश करतें ही कमर में मैला कुचला एक धोती लपटे हुए वयोबृद्ध चन्देश्वर सहनी से मुलाकात हो गयी। बदलाव की बाबत सवाल पूछते ही श्री सहनी भड़क जातें हैं। कहने लगे कि गांव में 90 प्रतिशत लोग निरक्षर है। कारण ये कि आजादी के बाद गांव में एक मात्र विद्यालय खुला, वह भी उर्दू। हिन्दी के छात्रों को दो किलो मिटर दूर धारपुर जाना परता है।

गावं में आगे बढ़ते ही सोमारी देवी पर नजर पड़ी। उसके गोद में करीब एक साल का बच्चा है, बच्चा क ा आंख भीतर तक धसा है और कलेजा व बांह का हड्डी दिखता है। जबकि, पेट फुला हुआ है। ऐसे और भी दर्जनो बच्चे दिखे, जो जबरदस्त कुपोषण के शिकार हैं। समीप में ही अर्द्धनग्न हालत में बैठे राजेन्द्र सहनी कहने लगे गांव में सरकारी डाॠक्टर कभी आया ही नही। यदा कदा एएनएम आती है। स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर चैनपुर से करीब तीन किलोमिटर दूर गोरीगामा में स्वास्थ्य उपकेन्द्र है। किंतु, वहा गांव वालों को देखने के लिए न डाॠक्टर है और नाही दवा। जगन्नाथ सहनी कहतें हैं कि गावं के लोग दो पाईप वाले यानी 40 फीट गहरा चापाकल का पानी पीतें हैं। जबकि, लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग इस पानी को पीने के लायक नही मानता है। दुसरी ओर तीन सरकारी चापाकल भी है, जो खराब पड़ा है।

कहने के लिए इस गांव का विद्युत्तिकरण हो चुका है। गांव में चारो ओर झुका हुआ पोल और खतरनाक हालात में लटका हुआ तार देखने को भी मिला। कई जगह बांस के पोल के सहारे भी लटका हुआ तार दीखा। लोगो के घर में मीटर भी लगा है। पर, वह चलता नही है। मामुली तुफान भी आ जाये तो सप्ताहों बिजली नही आती है। गांव को मुख्य मार्ग से जोड़ने के लिए प्रधान मंत्री सड़क है। किंतु, दो साल में ही इस सड़क का पींच उखड़ने लगा है। अजय सहनी ने जिलाधिकारी से इसकी शिकायत की तो ठेककेदार ने उन पर रंगदारी मांगने का आरोप लगा दिया। पर, किसी ने इसकी जांच करना जरुरी नही समझा।

शहीद की पतोहू पेट की खातिर मजदूरी करने को है विवश :

गावं के बीच में सरकारी मकान में रह रही 80 वर्षिया अनाथ मुनिया देवी। जीने के लिए हर पल जद्दो जेहाद करती हुयी मिली। यह वही मुनिया है, जिसके चचेरा ससुर जुब्बा सहनी को अंग्रेजो ने 11 मार्च 1944 को भागलपुर सेंट्रल जेल में फांसी पर चढ़ा दिया था। जुब्बा सहनी की यह इकलौती जीवित बची परिजन, उम्र की इस आखरी पराव में पेट की खातिर मजदूरी करती है। गरीबी व फटेहाली में जीवन वसर करने वाली मुनिया का दुर्भाग्य एक साल पहले ही शुरू हो गया। बूढ़ापे का सहारा मुनिया का एकलौता बेटा रुपलाल सहनी उर्फ बिकाउ सहनी गत वर्ष फांसी लगा कर आत्महत्या कर लिया और पतोहू अपने तीन लड़की व एक लड़का को लेकर मैके चली गयी। मुनिया कहती है कि कभी कभार पतोहू आती है। नजीता मुनिया को अपने गुजारा के लिए इस उम्र में मजदूरी करना पड़ रहा है। 

Post a Comment

0 Comments