मीनापुर। कौशलेंद्र झा
कई रोज बाद आज घुरहू काका मिलें। काका जल्दी में थे। दुर्गा पूजा के लिए चंदा वसूली करनी है। उनके चार भतीजे पहले से झंडा और डंडा लेकर सड़क पर मोर्चा सम्भाल चुकें हैं। प्रसाद खाने के नाम पर राहगीरो को रोकना और आस्था के नाम पर चंदा वसूली करना, इनकी दिनचर्या बन चुका है। बात सिर्फ दुर्गा पूजा की नही है। सरस्वती पूजा और विश्वकर्मा पूजा के अतिरिक्त महावीरी झंडा में भी चंदा वसूली का ठेका अपने काका को ही मिलता है। काका कहतें हैं कि बेरोजगारी के दिनों में हनुमानजी बड़े काम आतें हैं।
काका कहतें हैं कि वैसे तो हमारे समाज में आस्थावान लोगो की कोई कमी नही है। फिर भी कुछ लोग डंडा पटके बिना चंदा नही निकालते हैं। दिन में दो चार बार लप्पर थप्पर से निपटने के लिए भतिजों को हाई अलर्ट पर रखा हुआ है। सड़क पर निकल कर तो देखिए। हर चौथे, पांचवें किलो मिटर पर ऐसे भतिजों की फौज दीख जायेगी। पुलिस के पास जाने से कुछ नही होगा। यहा सभी मैनेज है भाई। दरअसल मीडिया वाला अटर पटर छाप के खेल बिगाड़ देता है।
काका खुद को बड़ा समाज सेवक होने का दावा करते हुए कहतें हैं कि हमलोग पुरा दिन डिउटी करतें हैं। धंधे में बहुत मेहनत करनी परती है। ऐसे में चंदा के पैसे से कचरी चूड़ा खा लिया, तो इसमें बुराई क्या है? शाम में लड़के लोग दो चार पैग नही लेंगे तो अगली सुवह काम कौन करेगा? आप लोगो से अच्छा तो अपना मुख्यमंत्री है। आपने धर्म ग्रथं नही पढ़ा? हमारे तो देवता भी चढ़ावे से खुश होकर सोमपान करतें थे। काका बिना रुके बोल रहे थे। कहने लगे कि नाच नही होगा तो दुर्गाजी को देखने आएगा कौन? नेपाल से डेढ़ लाख रुपये में नाच आ रहा है। पंडाल वाला को दो लाख रुपये देना है। बिजली और डेकोरेशन वाला लेगा, सो अलग। सारा खर्चा तो पूजे पर जायेगा न...।
बेटी का विवाह होता तो जमीन बिक जाता। आप तो जानतें ही है, गत सप्ताह गांव की लुखिया, बीमारी से तड़प तड़प कर दवा के अभाव में दम तोड़ गयी। किसी ने एक रुपये भी मदद किया क्या? मुसमात को रहने के लिए घर नही है। गांव की सड़क पर गड्ढ़़ा हो गया है। इसके लिए चंदा कौन देगा? चंदा लेना है तो नाच करना होगा। इसमें यदि आस्था जुड़ा हो तो चार, पांच लाख रुपये की वसूली कर लेना कोई बड़ी बात नही होती। जी, चौकिए नही। यें हमारी आस्था है। इसके खिलाफ एक शब्द भी निकला तो आपकी खैर नही...।
कई रोज बाद आज घुरहू काका मिलें। काका जल्दी में थे। दुर्गा पूजा के लिए चंदा वसूली करनी है। उनके चार भतीजे पहले से झंडा और डंडा लेकर सड़क पर मोर्चा सम्भाल चुकें हैं। प्रसाद खाने के नाम पर राहगीरो को रोकना और आस्था के नाम पर चंदा वसूली करना, इनकी दिनचर्या बन चुका है। बात सिर्फ दुर्गा पूजा की नही है। सरस्वती पूजा और विश्वकर्मा पूजा के अतिरिक्त महावीरी झंडा में भी चंदा वसूली का ठेका अपने काका को ही मिलता है। काका कहतें हैं कि बेरोजगारी के दिनों में हनुमानजी बड़े काम आतें हैं।
काका कहतें हैं कि वैसे तो हमारे समाज में आस्थावान लोगो की कोई कमी नही है। फिर भी कुछ लोग डंडा पटके बिना चंदा नही निकालते हैं। दिन में दो चार बार लप्पर थप्पर से निपटने के लिए भतिजों को हाई अलर्ट पर रखा हुआ है। सड़क पर निकल कर तो देखिए। हर चौथे, पांचवें किलो मिटर पर ऐसे भतिजों की फौज दीख जायेगी। पुलिस के पास जाने से कुछ नही होगा। यहा सभी मैनेज है भाई। दरअसल मीडिया वाला अटर पटर छाप के खेल बिगाड़ देता है।
काका खुद को बड़ा समाज सेवक होने का दावा करते हुए कहतें हैं कि हमलोग पुरा दिन डिउटी करतें हैं। धंधे में बहुत मेहनत करनी परती है। ऐसे में चंदा के पैसे से कचरी चूड़ा खा लिया, तो इसमें बुराई क्या है? शाम में लड़के लोग दो चार पैग नही लेंगे तो अगली सुवह काम कौन करेगा? आप लोगो से अच्छा तो अपना मुख्यमंत्री है। आपने धर्म ग्रथं नही पढ़ा? हमारे तो देवता भी चढ़ावे से खुश होकर सोमपान करतें थे। काका बिना रुके बोल रहे थे। कहने लगे कि नाच नही होगा तो दुर्गाजी को देखने आएगा कौन? नेपाल से डेढ़ लाख रुपये में नाच आ रहा है। पंडाल वाला को दो लाख रुपये देना है। बिजली और डेकोरेशन वाला लेगा, सो अलग। सारा खर्चा तो पूजे पर जायेगा न...।
बेटी का विवाह होता तो जमीन बिक जाता। आप तो जानतें ही है, गत सप्ताह गांव की लुखिया, बीमारी से तड़प तड़प कर दवा के अभाव में दम तोड़ गयी। किसी ने एक रुपये भी मदद किया क्या? मुसमात को रहने के लिए घर नही है। गांव की सड़क पर गड्ढ़़ा हो गया है। इसके लिए चंदा कौन देगा? चंदा लेना है तो नाच करना होगा। इसमें यदि आस्था जुड़ा हो तो चार, पांच लाख रुपये की वसूली कर लेना कोई बड़ी बात नही होती। जी, चौकिए नही। यें हमारी आस्था है। इसके खिलाफ एक शब्द भी निकला तो आपकी खैर नही...।
0 Comments