कही ये आपको उल्लू तो नही बना रहें हैं..........

मीनापुर  कौशलेन्द्र झा 
बात दिसम्बर 2011 की है। मैं मीडिया रत्न अबार्ड लेने देहरादून गया था। दिन भर चली अलंकरण समारोह के बाद शाम को लौट कर होटल आया। इसी होटल की गैलरी में राष्ट्रीय पार्टी के एक राष्ट्रीय नेता से मिलने का मौका मिला। वे पंजाबी थी और अपने एक समर्थक को कह रहे थे कि आप जैसे चलाक इंसान को उसने टोपी कैसे पहना दिया? उस वक्त मैं इसका अर्थ समझ नही पाया। बाद में पता चला कि टोपी पहनाने को पंजाबी लोग उल्लू बनाना कहतें हैं।
तीन साल बाद आज वही टोपी याद आ गया है। हमारे लोकतंत्र के महापर्व में टोपी पहना देना आम बात हो गया है। आम आदम ने टोपी को चुनाव का बढि़या मुद्दा बना दिया है। आम आदमी तो लोगो को टोपी पहना ही रहा है। सच तो ये है कि कोई भी इस पुनीत कार्य में पीछे नही है। कांगे्रस गांधी टोपी और भाजपा की भगवा टोपी तक तो बात समझ में आती हैं। यहां तो समाजवादी भी टोपी पहनाने लगें हैं। भाई मेरे, कही ये टोपी पहना कर आपको उल्लू तो नही बना रहें हैं? सोच लीजिए। सोचने में जाता ही क्या है?

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