भला मैं चुप कैसे बैठू...?

मीनापुर कौशलेन्द्र झा
साथियों मित्रों, लम्बे अर्से से इस देश की परंपरा रही है कि चुनाव का विगुल बजतें ही नेताजी खुद को विकास पुरु ष और बिरोधियों को निकम्मा साबित करने में लग जातें हैं। देश के महान मतदाता को भी अपने अपने क्षेत्र की समस्या याद आने लगता है। ऐसे में
भला मैं चुप कैसे बैठू?
मुझे भी कु छ याद आने लगा है। वैशाली को बुद्धिस्ट र्सिकट और रेल लाइन से जोड़ना याद आने लगा है। आपको कुछ याद आया? पिछले दिनो घोषणा हुई थी कि हाजीपुर-वैशाली-सुगोली रेल लाईन का सर्वेक्षण हो गया है। हाजीपुर वैशाली, सुगौली रेलवे लाइन की ३२४ करोड़ रुपये की योजना है। लेकिन अभी तक कुछ हुआ क्या? वैशाली भगवान बुद्ध की कर्मभूमि है। भगवान महावीर की जन्मभूमि है। लछवी गणतंत्र यानी जनतंत्र की भी जन्म भूमि है। फिर बुद्धिस्ट र्सिकट का मामला किधर चला गया?
बंद पड़े चीनी मिल और बूढ़ी गंडक नदी पर डुमरिया पुल को छोर देतें हैं। लेकिन लीची, केला व अन्य सब्जी के भंडारण हेतु बनने वाले कोल्ड स्टारेज का क्या करें? बाढ़ और सुखाड़ पर लच्छेदार भाषण देने वालों को याद है क्या कि मीनापुर में बूढ़ी गंडक का वाया तटबंध 12 किलो मिटर में खुला छोर दिया गया है। वैशाली में 90 प्रतिशत लोग कृषि पर आधारित है। बावजूद इसके सिंचाई का क्या प्रावधान है? बताना परेगा क्या? इसमें दो राय नही है कि विकास हुआ है। पर, आज भी गांव की सड़कें चलने लायक है क्या? आजादी के सात दशक बाद भी गांव के 95 प्रतिशत लोगो तक शुद्ध पेयजल का नही पहुंचना मुद्दा क्यों नही बनता है? भ्रष्ट्राचार तो गंगाजी के समान पवित्र हो चुका है। मौका मिलतें ही यहां सभी डुबकी लगाना चाहतें हैं। किंतु, चुनाव के इस महापर्व में महज थोड़े से वोट के लिए हम जाति व सम्प्रदाय को हवा देकर राष्ट्र को कमजोर नही कर रहें हैं क्या? सोचिए! मुझे आपके जवाब का इंतजार रहेगा।

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